बिरसा मुंडा की जयंती /जन्म स्थान /उनका जीवन यापन परिचय।

 बिरसा मुंडा की जयंती /जन्म स्थान /उनका जीवन यापन परिचय।



बिरसा मुंडा की जयंती 15 नवंबर को जनजाति गौरव दिवस के रूप में घोषित करने की मंजूरी दी ।

बिरसा मुंडा की जयंती 15 नवंबर को जनजातीय गौरव दिवस के रूप में घोषित करने की मंजूरी दी। 15 से 22 नवंबर किस तक सप्ताह भर चलने वाले समारोहों की योजना बनाई गई ।  मुंडा

बिरसा मुंडा का जन्म 15 नवंबर 1875 के दशक में छोटा किसान के गरीब परिवार में हुआ था। मुंडा एक जनजातीय समूह था जो छोटा नागपुर पठार झारखंड निवासी था बिरसा जी उन्नीस सौ में आदिवासी लोगों को संगठित देखेगा ब्रिटिश सरकार ने आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया तथा उन्हें 2 साल का दंड दिया।

आरंभिक जीवन

इनका जन्म मुंडा जनजाति के गरीब परिवार में पिता सुगना पूर्ति मुंडा का जन्म 15 नवंबर अट्ठारह सौ पचहत्तर को झारखंड के खूंटी जिले के उलिहतु गांव में हुआ था। जो निषाद परिवार से थे।  साल्गा का गांव में प्रारम्भिक पढाई के बाद उन्होंने चाईबासा जी0ई0एल0(गोस्नर एवंजिलकल लुथार) विद्यालय में पढ़ाई किए थे। इनका मन हमेशा अपने समाज के यूनाइटेड किंगडम की सरकारों शासकों द्वारा की गई बुरा दशा था पर सोचते रहते थे उन्होंने मुंडा। मुंडा लोगों को अंग्रेजों से मुक्ति पाने के लिए अपना नेतृत्व किया 18 जून 1894 में मानसून छोटा नागपुर छोटानागपुर में असफल होने के कारण भयंकर अकाल और महामारी फैली हुई थी। बिरसा ने अपने पूरे मनोयोग से अपने लोगों की सेवा की।

मुंडा विद्रोह का नेतृत्व

1 अक्टूबर के रूप में इन सभी मुद्दों को एकत्र कर उन्होंने अंग्रेजों से लगान कर माफी के लिए किया आंदोलन किया 1895 उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और हजारीबाग केंद्रीय कारागार में 2 साल के कारावास की सजा दी गई लेकिन वर्षा और उसके साथियों ने क्षेत्र की अकाल पीड़ित जनता की सहायता करनी थी और उन्होंने उन्हें अपने जीवन काल में ही एक पुरुष का दर्जा पाया उस इलाके के लोगों के नाम से पुकारा और पूजा करते थे उनके प्रभाव की वृद्धि के बाद पूरे इलाके में संगठित क्षेत्र में जाएगी।

विद्रोह में भागीदारी और अंत

अट्ठारह सौ सत्तावन से उन्नीस सौ के बीच में अंडा और अंग्रेज सिपाहियों के बीच युद्ध होते रहे और वीरता और उसके चाहने वाले लोगों ने अंग्रेजों की नाक में दम कर रखा था। अगस्त 18 सो 57 में वीरता और उसके 400 सिपाहियों ने तीर कमान से लैस होकर खूंटी थाने पर धावा बोला। 18 सो 98 में तांगा नदी किनारे मुंडा ओं की भीड़ अग्रेज सेना से हुई जिसमें पहले तो अंग्रेजी से ना हार गई लेकिन बाद में उसके बदले इस इलाके के बहुत से आदिवासी नेताओं की गिरफ्तारी हुई

जनवरी 1900 दोम्बरी पहाड़ पर एक और संघर्ष हुआ था जिसमें बहुत सी औरतें वह बच्चे मारे गए थे। उस जगह बिरसा अपनी जनसभा को संबोधित कर रहे थे। बाद में उड़ीसा की कुछ शिष्यों की गिरफ्तारियां भी हुई। में वीरता भी 3 फरवरी उन्नीस सौ चक्रधरपुर के जेम्को पाई जंगल के अंग्रेजों द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया बिरसा ने अंतिम सांसे 9-6-1900 अंग्रेजों द्वारा जहर देकर मारा गाया बिहार, उड़ीसा, झारखंड, छत्तीसगढ़ और पश्चिम की तरफ जाता है।

बिरसा मुंडा की समाधि रांची में कुकर के निकट डिस्टलरी पुल के पास स्थित है। वही उनका स्टेचू भी लगा है। उनकी स्मृति में रांची में बिरसा मुंडा केंद्रीय कारागार तथा बिरसा मुंडा अंतर्राष्ट्रीय विमानक्षेत्र भी है।

10 नवंबर 2021 को भारत सरकार ने 15 नवंबर यानी बिरसा मुंडा जयंती को जनजाति गौरव दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की

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